सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने मंगलवार को मौखिक रूप से कहा कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर न्यायिक अधिकारियों को बदनाम नहीं किया जा सकता.. सिर्फ इसलिए कि किसी को अनुकूल आदेश नहीं मिलता है इसका मतलब यह नहीं है कि आप न्यायिक अधिकारी को बदनाम करेंगे. न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ केवल कार्यपालिका से ही नहीं बल्कि बाहरी ताकतों से भी स्वतंत्रता है. यह दूसरों के लिए भी एक सबक होना चाहिए.जज ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए ये कहा जिसमें जिला जज के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के लिए एक व्यक्ति को 10 दिन की जेल की सजा सुनाई गई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायिक अधिकारी पर कोई भी आरोप लगाने से पहले उन्हें दो बार सोचना चाहिए था. उन्होंने न्यायिक अधिकारी को बदनाम किया है. न्यायिक अधिकारी की छवि को हुए नुकसान के बारे में सोचना चाहिए. शीर्ष अदालत कृष्ण कुमार रघुवंशी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी. जिसमें एक जिला न्यायाधीश के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के लिए उसके खिलाफ शुरू किए गए आपराधिक अवमानना मामले में उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी. SC ने कहा कि वह इस मामले में दखल देने को इच्छुक नहीं है. याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील ने सुप्रीम कोर्ट से नरमी बरतने की मांग की और कहा कि जेल का आदेश अत्यधिक है.
वकील ने कहा कि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता से जुड़ा मामला है और आवेदक 27 मई से पहले ही जेल में है. शीर्ष अदालत की पीठ ने तब टिप्पणी की, "हम यहां कानून पर फैसला करने के लिए हैं, दया दिखाने के लिए नहीं, खासकर ऐसे व्यक्तियों के लिए."
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