NDA सरकार के तीसरे कार्यकाल में कौन बनेगा पीएम मोदी का नया संकट मोचक? - G.News,ALL IN ONE NEWS BRAKING NEWS , NEWS , TOP BRAKING NEWS, G.News, HINDI NEWS top braking news,

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Wednesday 5 June 2024

NDA सरकार के तीसरे कार्यकाल में कौन बनेगा पीएम मोदी का नया संकट मोचक?

अगले एक हफ्ते में भारत में नई सरकार होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) तीसरी बार शपथ लेंगे. उन्होंने पहले जो योजनाएं बनाई थीं, वे उन्हें आगे लेकर जाएंगे. प्रधानमंत्री ब्यूरोक्रेसी को लेकर अपना एक रोडमैप पहले ही कई बार शेयर कर चुके हैं. उसे लेकर उन्होंने काफी फैसले भी लिए हैं. यही नहीं देश में आंतरिक मामलों में कुछ बदलाव लाने की बात भी की जा रही है, ऐसे में उनका नया संकट मोचक कौन होगा? पहले यह भूमिका नेशनल सिक्यूरिटी एडवाइजर (NSA) अजीत डोभाल (Ajit Doval) निभा रहे थे. 

अजीत डोभाल को पिछली सरकार में कैबिनेट रैंक दी गई थी. उनका कार्यकाल 3 जून को खत्म हो गया. माना जा रहा है कि अब वे तीसरी टर्म में पीएम मोदी के साथ नहीं रहेंगे. उन्होंने अपना इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने कहा है कि बढ़ती उम्र के चलते अब वे तीसरे कार्यकाल में सुरक्षा सलाहकार के रूप में पीएम मोदी के साथ जुड़े रहना नहीं चाहते. 

एनएसए का पद क्यों है महत्वपूर्ण?
अब डोभाल की जगह कौन होगा, इस बारे में कई नाम सामने आए हैं. इससे पहले यह जान लेना चाहिए कि देश में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की क्या भूमिका रही है? और क्यों यह पद अहम माना जाता है? यह एक संवैधानिक पद है. प्रधानमंत्री का विश्वसनीय अधिकारी राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होता है. रणनीतिक मामलों में या पड़ोसी देशों की ओर से खतरों के मामलों में, आंतरिक सुरक्षा के मामलों में वे प्रधानमंत्री की मदद करते हैं और सलाह देते हैं. वे बताते हैं कि क्या फैसले लिए जाने चाहिए और भारत के हित में क्या ठीक होगा. वे प्रधानमंत्री को दुनिया भर के राजनीतिक मामलों को लेकर आगे का रोडमैप भी देते हैं. 

अजीत डोभाल पिछले 10 साल से इस कार्यभार को संभाल रहे थे. पहला कार्यकाल 2014 से 2019 तक था. सन 2019 में उनकी रैंक को बढ़ाकर कैबिनेट मिनिस्टर की रैंक के समतुल्य कर दिया गया. 

अजीत डोभाल का दिलचस्प इतिहास
अजीत डोभाल का इतिहास काफी दिलचस्प रहा है. उन्होंने बतौर पुलिस अधिकारी काफी ऑपरेशन किए. उन्होंने कांग्रेस के साथ भी उतना ही काम किया है जितना बीजेपी की सरकारों के साथ किया. उन्होंने ज्यादा से ज्यादा डिटेल के साथ ऑपरेशनों का संचालन किया है. सबसे पहले मिजो एकॉर्ड का नाम सामने आता है. उसमें उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. जब सिक्किम को राज्य का दर्जा दिया गया था तब भी उन्होंने अहम रोल निभाया था. जब 1984 के दंगे हुए थे तब वे पाकिस्तान में थे. वे वहां जासूस के रूप में काम कर रहे थे. जब 1988 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर हुआ था तब भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. बताया जाता है कि तीन महीने तक वे बतौर पाकिस्तानी एजेंट आतंकवादियों के साथ स्वर्ण मंदिर में छुपे रहे थे. उन्हीं के नेतृत्व में एनएसजी का ऑपरेशन कामयाब हुआ था. इसी के चलते उन्हें कार्ति चक्र से नवाजा गया था. 

सन 1995 में जब जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए थे तब भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी. कश्मीर में 1990 के दशक में आतंकवाद का दौर शुरू हो गया था. उसके बाद पहले चुनाव 1995 में हुए थे. सन 1999 में कांधार में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी, जब आईसी 814 हाईजैक हुआ था. हाईजैकर्स ने कांधार जाकर प्लेन पार्क कर दिया था. आतंकवादियों से डील करने के लिए डोभाल वहां गए थे. वे विमान के अंदर भी गए थे. उनके प्रयासों से सारे यात्रियों को छोड़ दिया गया था. 

मुंबई पुलिस के खलल डालने से नाकामयाब हुई योजना 
इसके बाद डोभाल का नाम चर्चा में तब आया जब 2004 में सरकार के बदलने पर वे डायरेक्टर इंटेलीजेंस बने थे. उन्होंने इस पद पर एक साल काम किया था और रिटायर हो गए थे. सन 2005 में उनके नाम का जिक्र तब फिर आया जब वे एक ऑपरेशन प्लान कर रहे थे. इंडिया का मोस्ट वांटेड दाउद इब्रहीम दुबई में था और उसकी बेटी की शादी होने वाली थी, तब उन्होंने ऑपरेशन प्लान किया था कि वे यहां से छोटा राजन के दो गुर्गों को भेजेंगे. लेकिन मुंबई पुलिस ने इस ऑपरेशन में खलल डाल दी थी. पुलिस ने जब चाणक्यपुरी में एक गाड़ी को इंटरसेप्ट किया था जो लोग मिले थे, उनमें विकी मल्होत्रा और उसका एक सहयोगी था और तीसरे शख्स अजीत डोभाल थे. तब इस ऑपरेशन का नेतृत्व कर रहीं थी मुंबई पुलिस की मीरा भुरवनकर. तब वे डोभाल को जानती तक नहीं थीं. तब यह पता चला था कि वे इस तरह का ऑपरेशन प्लान कर रहे थे. मुंबई पुलिस के बाधा खड़ी करने से वे कामयाब नहीं हो पाए थे. 

सन 2014 में जब प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार सरकार बनाई तब डोभाल दुबारा लाइम लाइट में आए और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में उनसे जुड़े. वे इसलिए चुने गए क्योंकि वे राष्ट्रवादी विचारधारा पर विश्वास करते हैं. वे हमेशा कहते हैं कि हमेशा नेशन फर्स्ट होना चाहिए. भारत के हित को वे हमेशा ऊपर रखते हैं, जिसके चलते उन्हें यह अहम भूमिका दी गई थी. उन्होंने 2014 से 2019 तक कई महत्वपूर्ण ऑपरेशन किए. उनका सबसे पहला अहम ऑपरेशन वह था जिसमें इराक में फंसीं नर्सों को वापस लाया गया था. उन्होंने इंडिपेंडेंट फॉरेन पॉलिसी को लेकर भारत सरकार को एक रास्ता दिखाया. भारत की एक देश के रूप में मजबूत छवि बनाने में उन्होंने काफी मदद की थी. अमेरिका  और रूस के साथ संतुलन बनाकर चलने की पॉलिसी में भी दिशानिर्देश अजीत डोभाल ने ही दिए थे. 

पीएम मोदी की ग्लोबल लीडर की छवि बनाने में योगदान  
प्रधानमंत्री मोदी की जो विश्व नेता के रूप में छवि बनी उसमें भी अजीत डोभाल ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. हालांकि उन्होंने अपने सारे काम स्टेज के पीछे रहकर किए. उड़ी की सर्जिकल स्ट्राइक, पुलवामा हमले के बाद बालाकोट और साइबर टेरर जैसे मामलों में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी.                                                

अगले एनएसए के लिए तीन नामों की चर्चा
अब माना जा रहा है कि पीएम मोदी के नेतृत्व वाली तीसरी एनडीए सरकार में अजीत डोभाल नहीं होंगे. उनकी जगह कौन होगा, इसकी चर्चा काफी चल रही है. इनमें सबसे ऊपर नाम आरएन रवि का है, जो कि फिलहाल तमिलनाडु के राज्यपाल हैं. वे भी इंटेलीजेंस ब्यूरो में रहे हैं. दूसरा नाम विदेश मंत्री एस जयशंकर का है. तीसरा नाम आलोक जोशी का है, जो कि रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) के हेड रह चुके हैं. यह तो तय नहीं कि इनमें से ही किसी को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की भूमिका दी जाएगी या कोई और इस पर को संभालेगा, लेकिन सवाल यह है कि अजीत डोभाल ने पीएम मोदी के लिए जो संकट मोचक की भूमिका निभाई थी, क्या नया एनएसए भी वह भूमिका निभा पाएगा? 



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