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Wednesday 21 August 2024

Analysis: परिवार में फूट से पार्टी में टूट तक... ऐसे हीरो से जीरो बन गया हरियाणा के चौटाला ताऊ का कुनबा

हरियाणा के सियासत की बात की जाए, तो चौधरी देवीलाल और उनके चौटाला कुनबे का जिक्र जरूरी हो जाता है. हरियाणा के ताऊ नाम से मशहूर देवीलाल चौटाला ने देश की आज़ादी के आंदोलन से लेकर डिप्टी पीएम तक का लंबा रास्ता बड़े रसूख के साथ तय किया. कहा जाता है कि ताऊ देवीलाल सत्ता में रहे हों या फिर सत्ता से बाहर, सरकार में धमक तो उनकी ही रहती थी. कई दशक लंबे अपने सियासी करियर में देवीलाल जननायक की छवि के साथ हरियाणा के दिल में बसे रहे.

एक वक्त ऐसा भी था, जब BJP के साथ गठबंधन सरकार में उनकी पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) बिग ब्रदर के रोल में हुआ करती थी. धीरे-धीरे परिवार में फूट का असर पार्टी में दिखने लगा. पार्टी में बिखराव हुआ तो INLD का कद भी घटता चला गया. परिवार के दो हिस्से हुए और INLD भी दो फाड़ हो चुकी है. हरियाणा में 1 अक्टूबर को विधानसभा के चुनाव हैं. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि बिखर चुका चौटाला परिवार और बिखर चुकी INLD कैसे खुद को समेट पाती है:-

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हरियाणा के ताऊ का रसूख
हरियाणा के ताऊ चौधरी देवीलाल की सियासी कहानी आजादी के बाद से शुरू होती है. 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में चौधरी देवीलाल संयुक्त पंजाब विधानसभा में विधायक बनकर गए. विधानसभा पहुंचकर उन्होंने भाषा के आधार पर अलग हरियाणा राज्य की मांग उठाई. 1957 और 1962 में भी वह विधायक बन कर पंजाब विधानसभा पहुंचे. हरियाणा बनने के बाद उनकी मुख्यमंत्री बंसीलाल से खटपट हो गई. मतभेद इतने गहरे हो गए कि 1968 के मध्यावधि चुनाव में कांग्रेस ने देवीलाल को टिकट ही नहीं दिया. देवीलाल ने इसके बाद कांग्रेस ही छोड़ दी.

1975 में आपातकाल के दौर में वह आंदोलन में सक्रिय रहे. 1977 में वो हरियाणा में सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे. 1977-79 और फिर 1987 में हरियाणा के मुख्यमंत्री बने. 1989 से 1991 तक केंद्र में जनता पार्टी की सरकार रही. वीपी सिंह और चंद्र शेखर की सरकारों में तब देवीलाल उप-प्रधानमंत्री रहे. 1989 में देवीलाल ने हरियाणा की रोहतक और राजस्थान की सीकर लोकसभा सीट से चुनाव जीता. फिर रोहतक सीट छोड़ दी. इसके बाद वे कभी रोहतक से चुनाव जीत नहीं पाए. 

परिवार में बिखर गई परिवार की विरासत
चौधरी देवीलाल के चार बेटे हुए और एक बेटी. ओम प्रकाश चौटाला, रणजीत सिंह, प्रताप सिंह और जगदीश सिंह. इनमें से प्रताप चौटाला और जगदीश चौटाला का निधन हो चुका है. बेटी शांति देवी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है.

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1996 में अस्तित्व में आई INLD
कहते हैं एकजुटता में बड़ी ताकत होती है. कई बार राजनीति में एकजुटता की वजह से कई पार्टियों की किस्मत चमक जाती है. लेकिन अगर पार्टी में फूट पड़ जाए, तो ये घुन की तरह संगठन को खत्म कर देता है. INLD के साथ कुछ ऐसा ही हुआ. इंडियन नेशनल लोकदल की स्थापना भारत के चौधरी देवीलाल ने अक्टूबर 1996 में हरियाणा लोकदल (राष्ट्रीय) के नाम से की थी. INLD या इनलो 1987 के दौरान एक क्षेत्रीय पार्टी के रूप में राजनीतिक अस्तित्व में आई. ओम प्रकाश चौटाला ने इसका नाम बदलकर इंडियन नेशनल लोकदल कर दिया था. अभी देवीलाल के सबसे बड़े बेटे ओमप्रकाश चौटाला पार्टी के अध्यक्ष हैं. ओम प्रकाश चौटाला के छोटे बेटे अभय सिंह चौटाला पार्टी के महासचिव हैं. जबकि INLD से अलग होकर बनी जननायक जनता पार्टी (JJP) की कमान ओमप्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला और उनके बेटे दुष्यंत चौटाला के हाथों में है. 

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2018 में चौटाला परिवार बिखरा, INLD को हुआ नुकसान
2018 में चौटाला परिवार में विरासत की लड़ाई होने लगी. कुनबा बिखरा, तो दरारें INLD में भी दिखी. ओम प्रकाश चौटाला और उनके बड़े बेटे अजय चौटाला की राहें जुदा हो गईं. INLD से अलग होकर उन्होंने जननायक जनता पार्टी (JJP) बनाई. 2019 के विधानसभा चुनाव में जननायक जनता पार्टी ने हरियाणा की कुल 90 में से 10 सीटें जीतीं. अजय चौटाला के बेटे दुष्यंत चौटाला किंगमेकर बनकर उभरे. BJP ने JJP के साथ मिलकर सरकार बनाई. हालांकि, लोकसभा चुनाव में JJP एक भी सीट नहीं जीत पाई. फिर भी गठबंधन बना रहा. इसके बाद 2024 में लोकसभा चुनाव के पहले ही BJP और JJP का ब्रेकअप हो गया. खट्टर ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया और नायब सिंह सैनी सीएम बना दिए गए. ऐसे में मजबूरन दुष्यंत चौटाला को डिप्टी सीएम पद छोड़ना पड़ा. 

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2024 के लोकसभा चुनावों में JJP ने हरियाणा की सभी 10 सीटों पर चुनाव लड़ा, जबकि INLD ने उनमें से 7 सीटों पर चुनाव लड़ा. दोनों ही पार्टियों को एक भी सीट नहीं मिली. BJP और कांग्रेस ने 5-5 सीटें जीतीं. कभी देवीलाल के समर्थक रहे कांग्रेस के जय प्रकाश ने जाट बहुल हिसार सीट पर चौटाला परिवार के तीन सदस्यों देवीलाल के बेटे रणजीत सिंह (BJP), ओम प्रकाश चौटाला की बहू सुनैना चौटाला (INLD) और नैना चौटाला (JJP) को हरा दिया. 

JJP के पास बच गए सिर्फ 3 विधायक
इसके बाद राज्य में JJP की हालत कमजोर होती गई. पहले पार्टी के पास 10 विधायक थे. अब सिर्फ 3 विधायक ही बचे हैं. बाकी या तो BJP में शामिल हो गए या कांग्रेस का हाथ थाम चुके हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में INLD को कोई सीट नहीं मिली। विधानसभा चुनाव में भी एक ही सीट मिली. 

INLD को चुनाव निशान खोने का खतरा
मौजूदा समय में देखें, तो INLD और JJP दोनों ही राज्य में अपनी राजनीतिक विरासत को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है. INLD के सामने अपना नाम और निशान खोने का खतरा भी है. क्योंकि अगर  इस बार के चुनाव में पार्टी ने कम से कम 6% वोट नहीं हासिल किए. या उसे एक सीट या 8% वोट नहीं मिले, तो स्टेट पार्टी का दर्जा छिन सकता है. ऐसे में चुनाव आयोग INLD से चश्मे का चुनाव निशान तक वापस ले सकता है.

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