न्याय सबके लिए है और न्याय की देवी के सामने सभी बराबर हैं. इस दार्शनिक सिद्धांत की प्रतीक न्याय की देवी (Lady of Justice) भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों की अदालतों, कानून से जुड़े संस्थानों में सदियों से मौजूद है. आंखों पर पट्टी बांधे, एक हाथ में तराजू और दूसरे हाथ में तलवार लिए न्याय की देवी के प्रतीकों में भारत में बदलाव की पहल की गई है. न्याय की देवी की आंखों की पट्टी खोल दी गई है और उनके एक हाथ में तलवार की जगह संविधान आ गया है. हम आपको बताते हैं कि न्याय की देवी का क्या अर्थ है, इसमें क्या संदेश और प्रतीक हैं? न्याय की देवी का जन्म कहां हुआ और इसे दुनिया भर में क्यों अपना लिया गया?
लेडी ऑफ जस्टिस का इतिहास
न्याय की देवी यानी लेडी ऑफ जस्टिस का इतिहास कई हजार साल पुराना है. इसकी अवधारणा प्राचीन ग्रीक और मिस्र की सभ्यता के दौर से चली आ रही है. न्याय की देवी, जिसे लेडी जस्टिस भी कहते हैं, की प्राचीन छवियां मिस्र की देवी 'मात' से मिलती-जुलती हैं. मात मिस्त्र के प्राचीन समाज में सत्य और व्यवस्था की प्रतीक थीं. ग्रीक पौराणिक कथाओं में न्याय की देवी थीमिस और उनकी बेटी डिकी हैं, जिन्हें एस्ट्राया के नाम से भी जाना जाता है. प्राचीन यूनानी दैवीय कानून और रीति-रिवाजों की प्रतिमूर्ति देवी थेमिस और उनकी बेटी डिकी की पूजा करते थे. डिकी को हमेशा तराजू लिए हुए चित्रित किया जाता था और ऐसा माना जाता था कि वह मानवीय कानून पर शासन करती है. प्राचीन रोम में डिकी को जस्टिटिया के नाम से भी जाना जाता था. ग्रीक देवी 'थीमिस' कानून, व्यवस्था और न्याय का प्रतिनिधित्व करती थी, जबकि रोमन सभ्यता में देवी 'मात' थी, जो कि व्यवस्था के लिए खड़ी एक ऐसी देवी थी जो तलवार और सत्य के पंख रखती थी. हालांकि, मौजूदा न्याय की देवी की सबसे सीधी तुलना रोमन न्याय की देवी जस्टिटिया से की जाती है.
ग्रीक सभ्यता में हर काम में दैवीय मौजूदगी
पुनर्जागरण काल के बाद बनी शक्तिशाली प्रतीक
पुनर्जागरण काल (Renaissance) में यूरोप में मिथकों की निर्माण भी चलता रहा. नए उभरे गणराज्यों में न्याय की देवी नागरिकों के लिए कानून और न्याय की एक शक्तिशाली प्रतीक बन गई. यह राजाओं के दैवीय अधिकार के सिद्धांत का समर्थन करती थी लेकिन इसमें लोकतांत्रिक सिद्धांतों के साथ न्याय की निष्पक्षता का महत्वपूर्ण सिद्धांत अहम था.
न्याय की देवी के प्रतीक को दर्शाने वाली कलाकृतियां, पेंटिंग, मूर्तियां दुनिया भर में पाई जाती हैं. उत्तरी अमेरिका, दक्षिणी अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, मध्य-पूर्व, दक्षिणी एशिया, पूर्वी एशिया और ऑस्ट्रेलिया की अदालतों, कानून से जुड़े दफ्तरों, कानूनी संस्थाओं और शैक्षणिक संस्थानों में न्याय की देवी की प्रतिमाएं और तस्वीरें देखने को मिलती हैं.
भारत में न्याय की देवी कैसे आई?
यूनानी सभ्यता से न्याय की देवी यूरोप और अमेरिका पहुंची. इसे भारत ब्रिटेन के एक अफसर लेकर आए थे. इसे 17वीं सदी में एक अंग्रेज न्यायालय अधिकारी भारत लाया था. ब्रिटिश काल में 18वीं शताब्दी के दौरान न्याय की देवी की मूर्ति का सार्वजनिक इस्तेमाल किया जाने लगा. भारत की आजादी के बाद न्याय की देवी को उसके प्रतीकों के साथ भारतीय लोकतंत्र में स्वीकार किया गया.
न्याय की देवी के प्रतीक
तराजू : तराजू निष्पक्षता और कानून के दायित्व (अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से) को अदालत में पेश साक्ष्य का तौलकर परीक्षण करने को दर्शाते हैं. कानूनी मामले में प्रत्येक पक्ष को देखा जाना चाहिए और न्याय करते समय तुलना की जानी चाहिए.
तलवार : तलवार शक्ति संपन्नता और सम्मान की प्रतीक है. इसका अर्थ है कि न्याय अपने फैसले पर कायम है और कार्रवाई करने में सक्षम है. तलवार बिना म्यान के है जो कि बहुत साफ तौर पर संकेत देती है कि न्याय पारदर्शी है. दोधारी तलवार बताती है कि सबूतों की जांच के बाद किसी भी पक्ष के खिलाफ फैसला सुनाया जा सकता है और यह फैसले को लागू करने के साथ-साथ निर्दोष पक्ष की रक्षा या बचाव करने में सक्षम है.
आंखों पर पट्टी : न्याय की देवी की आंखों पर पट्टी पहली बार 16वीं शताब्दी में दिखाई दी थी. तब से इसका इस्तेमाल कई स्थानों पर किया जाता रहा है. आंखों पर पट्टी कानून की निष्पक्षता और वस्तुनिष्ठता की प्रतीक है. इसका यह भी अर्थ है कि फैसले राजनीति, धन या प्रसिद्धि जैसे कारणों से प्रभावित नहीं होते हैं.
भारत में न्याय की देवी के प्रतीक बदले
भारत में न्याय की देवी की वेशभूषा में बदलाव किया गया है. अब भारत की न्याय की देवी की आंखों पर से पट्टी हट गई है. उनके हाथ में तलवार की जगह संविधान आ गया है. न्यायपालिका ने ब्रिटिश शासन की परंपरा में बदलाव किया है. सुप्रीम कोर्ट ने देश को संदेश दिया है कि अब ' कानून अंधा' नहीं है. इसके अलावा सजा देने की प्रतीक देवी के एक हाथ में रहने वाली तलवार हटा दी गई है. उसकी जगह संविधान ने ले ली है.
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