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Friday, 15 November 2024

गरीबों के लिए मुसीबत बनी है शराबबंदी... HC ने क्यों कहा ऐसा? अब क्या करेगी नीतीश सरकार

सभ्य और सुसंस्कत समाज में शराब की कोई जगह न तो होती है और न ही दी जाती है. इसीलिए हर मां-बाप अपने बच्चों को शराब से दूर रहने की सलाह देते हैं. इस पर पाबंदी अगर लगे, तो इसका जाहिर तौर पर स्वागत होना चाहिए. लेकिन, शराबबंदी कर चुके बिहार में ऐसा लग रहा है कि सब उल्टा हो रहा है. राज्य में शराबबंदी के बावजूद लोग जहरीली शराब पीकर हमेशा के लिए मौत की नींद सो रहे हैं. अब तो पटना हाईकोर्ट ने भी कह दिया है कि शराबबंदी 'गरीबों के लिए' मुसीबत बन गई है. 

पटना हाईकोर्ट ने एक पुलिस अधिकारी के केस में फैसला सुनाते हुए कहा, "राज्‍य सरकार ने 2016 में शराबबंदी की, तो उसके पीछे सही मकसद था. सरकार की कोशिश थी कि लोगों का जीवन स्‍तर सुधारे. स्वास्थ्य पर बुरा असर ना पड़े, लेकिन कुछ वजहों से अब इसको इतिहास में बुरे निर्णय के रूप में देखा जा रहा है."

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जस्टिस पूर्णेंदु सिंह ने पटना के एक SI मुकेश कुमार पासवान की याचिका पर 29 अक्‍टूबर को फैसला सुनाया था. 24 पन्ने की फैसले की कॉपी को 13 नवंबर को हाईकोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया गया. जिसपर चर्चा गर्म है. 

बिहार में कब हुई शराबबंदी?
बिहार में साल 2016 से नीतीश कुमार ने ही पूर्ण शराबबंदी लागू की. राजनीतिक पंडितों ने इसे नीतीश कुमार का मास्टर स्ट्रोक करार दिया. उसके बाद के चुनावों में JDU और नीतीश कुमार को शराबबंदी का बंपर फायदा मिला. खास तौर पर महिला मतदाताओं ने उनका समर्थन किया.

शराबबंदी की वजह से बनने लगी नकली शराब
शराबबंदी के फैसले को करीब 8 साल हो रहे हैं. कुछ रिपोर्ट के मुताबिक, इस फैसले के बाद से घरेलू हिंसा के मामले राज्य में कम हुए. बिहार के लाखों लोग मोटापे और अनचाही बीमारियों से भी बचे. लेकिन शराबबंदी का स्याह पहलू भी है. इसके चलते धड़ल्ले से नकली और फर्जी शराब बनने लगीं. इनकी बिक्री के मामलों में इजाफा हुआ. जहरीली शराब से लोगों की मौतें हो रही मौतें हैं. शराब तस्करी के मामले बढ़े हैं.

सिवान में जहरीली शराब पीने से गुरुवार को 4 लोगों की तबीयत अचानक बिगड़ी. इनमें से एक शख्स की बाद में मौत हो गई है. बाकी लोगों का इलाज जारी है, जिनमें से एक शख्स की आंखों की रोशनी चली गई है. नीतीश सरकार पर आरोप लगते रहे हैं कि शराबबंदी के बावजूद बिहार के कोने-कोने में शराब बिक रही है. इसी मुद्दे पर पटना हाइकोर्ट ने बिहार सरकार और शराबबंदी कानून को आड़े हाथों लिया. 

बिहार से नेपाल की सीमा सटी हुई है. राज्य के सात जिले पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सहरसा, अररिया, किशनगंज नेपाल के साथ सटे हुए हैं. नेपाल में शाम होते ही नशे और शराब का कारोबार शुरू हो जाता है. बिहार में शराब नहीं मिलने पर लोग नेपाल बॉर्डर से भी मंगवाते हैं.

हाईकोर्ट ने क्या कहा?
-हाइकोर्ट ने कहा कि यह कानून शराब और दूसरी गैरकानूनी चीजों की तस्करी को बढ़ावा दे रहा है. गरीबों के लिए परेशानी का सबब बन गया है. 

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-हाईकोर्ट ने कहा कि बिहार सरकार ने 2016 में शराबबंदी कानून लोगों के जीवन और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए लागू किया था, लेकिन यह कानून अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाया. पुलिस, एक्साइज, वाणिज्य कर और परिवहन विभाग के अधिकारी इस कानून का फायदा उठा रहे हैं. 

-अदालत ने शराब तस्करी में शामिल बड़े लोगों पर कम मामले दर्ज होते हैं, जबकि गरीब लोग जो शराब पीते हैं या नकली शराब पीने से बीमार पड़ते हैं, उनके खिलाफ ज्यादा मामले दर्ज होते हैं. 

-साथ ही हाइकोर्ट ने कहा कि यह कानून पुलिस के लिए एक हथियार बन गया है. पुलिस अक्सर तस्करों के साथ मिलीभगत करती है. कानून से बचने के नए-नए तरीके इजाद किए जा रहे हैं. ये यह कानून मुख्य रूप से राज्य के गरीब लोगों के लिए ही मुसीबत का कारण बन गया है.

इंस्पेक्टर के डिमोशन से जुड़ा मामला
ये टिप्पणी करते हुए हाइकोर्ट ने एक पुलिस इंस्पेक्टर को दी गई सजा रद्द कर दी. ये सजा शराबबंदी कानून के तहत उनके इलाके में शराब पकड़े जाने पर दी गई थी. दरअसल, याचिकाकार्ता मुकेश कुमार पासवान पटना बाईपास पुलिस स्टेशन में स्टेशन हाउस ऑफिसर के रूप में कार्यरत थे. उन्हें इसलिए निलंबित कर दिया गया था, क्योंकि राज्य के एक्साइज अधिकारियों ने उनके पुलिस स्टेशन से करीब 500 मीटर दूर छापेमारी की थी और विदेशी शराब जब्त की थी. राज्य सरकार ने उन्हें डिमोशन की सजा दी.

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विभागीय जांच के दौरान मुकेश कुमार पासवान ने अपना पक्ष रखा और हाइकोर्ट का भी रुख किया. सुनवाई में हाईकोर्ट ने पाया कि यह सजा पहले से निर्धारित थी, जिससे पूरी विभागीय प्रक्रिया मात्र औपचारिकता बनकर रह गई. अदालत ने न सिर्फ सजा के आदेश को रद्द किया, बल्कि याचिकाकर्ता के खिलाफ शुरू की गई विभागीय कार्रवाई को भी रद्द कर दिया.

विपक्ष ने भी नीतीश सरकार को लिया आड़े हाथ
पटना हाइकोर्ट की सख्त टिप्पणी को लेकर विपक्ष ने नीतीश सरकार को आड़े हाथों लिया है. लालू यादव की पार्टी RJD के प्रवक्ता शक्ति यादव ने कहा, "हाइकोर्ट ने बिहार के अवैध शराब के कारोबार पर मुहर लगा दी है. उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार ने बिहार को 'जिंदा लाश' में तब्दील कर दिया है."

बिहार सरकार ने किया बचाव
वहीं, बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी ने हाइकोर्ट की टिप्पणी और जहरीली शराब से मौत की बढ़ती घटनाओं को लेकर सरकार का बचाव किया है.

प्रशांत किशोर भी साध रहे निशाना
2025 के विधानसभा चुनाव की तैयारी में जुटे जनसुराज पार्टी के प्रमुख प्रशांत किशोर लगातार बोल रहे हैं कि शराबबंदी राज्य में फेल हो गई है. वो तमाम सरकारी दावों के खिलाफ भी आवाज उठाते रहते हैं. पीके ने दावा किया है कि बिहार में हमारी सरकार बनी तो एक घंटे के अंदर शराबबंदी कानून को उखाड़कर फेंक देंगे.

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जनसुराज पार्टी ने दावा किया है कि बिहार में विश्वस्तरीय शिक्षा व्यवस्था के लिए 5 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है. जब शराबबंदी हटेगी तो वह पैसा नेताओं की सुरक्षा के लिए खर्च नहीं होगा. उस पैसे का इस्तेमाल नई शिक्षा व्यवस्था बनाने के लिए करेंगे. बता दें कि शराबबंदी से हर साल बिहार को 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है.

शराबबंदी का लेखाजोखा
-8 साल में 8 लाख 43 हजार FIR दर्ज हुई है.
- 12 लाख 79 हजार लोगों को अरेस्ट किया गया है.
-3 करोड़ 46 लाख लीटर शराब बरामद किया गया है.
-266 लोगों की संदिग्ध मौत में 156 लोगों की मरने की वजह जहरीली शराब.
-बिहार के बाहर 234 शराब माफिया गिरफ्तार किए गए हैं.
-एजेंसियों का मानना है कि शराबबंदी के बाद ड्रग्स का इस्तेमाल बढ़ा है.

कुछ मामलों में दिखा पॉजिटिव इफेक्ट
बेशक सवाल हैं, जिनके जवाब खोजे जाने चाहिए. लेकिन शराबबंदी कानून को लेकर नीतीश कुमार सरकार के कुछ सकारात्मक पहलू भी सामने आए हैं. लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में शराबबंदी का असर दिखा है. 
-रोज-साप्ताहिक रूप से शराब पीने के मामलों में 24 लाख की कमी आई है. 
-घरेलू हिंसा के मामलों में भी 21 लाख की कमी दर्ज की गई है. 
-यौन हिंसा में 3.6% की कमी आने की बात कही गई है. 
-भावनात्मक हिंसा के मामले 4.6% कम हुए हैं. 
-8 लाख लोग मोटापे का शिकार होने से बचे हैं.

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बिहार के अलावा और किन राज्यों में है शराबबंदी?
-मणिपुर में सबसे पहले 1991 में शराबबंदी लागू की गई थी. हालांकि, अब सरकार ने इसमें कुछ हद तक छूट दे दी है.
-आंध्र प्रदेश में 1995 में शराबबंदी लागू हुई. कुछ साल बाद बैन हटा लिया गया.
-हरियाणा ने 1996 में शराबबंदी लागू की. 2 साल बाद यानी 1998 में इसे वापस ले लिया गया.
-अभी बिहार के बाद नगालैंड, मिजोरम, गुजरात और लक्षद्वीप में शराबबंदी लागू है.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
नाडा इंडिया फाउंडेशन के चेयरमैन सुनील वात्स्यायन बताते हैं, "शराबबंदी के फायदे या नुकसान को समझने से पहले हमें ह्यूमन कैपिटल को समझना होगा. जब हम ह्यूमन कैपिटल की बात करते हैं, तो शराब समस्याओं का हल नहीं है. ये समस्या के लिए इस्तेमाल किया जाता है. शराबबंदी से घरेलू हिंसा और यौन हिंसा में जो कमी आई है. लोगों की सेहत में जो कुछ हद तक का सुधार हुआ है, ये अपने आप में एक इंडिकेटर है कि शराबबंदी से फायदा हुआ है. शराबबंदी एक पब्लिक डिमांड पर किया गया था. अगर ये सिर्फ एक राजनीतिक फैसला होता, तो ये एक नुकसान का सौदा है."

सुनील वात्स्यायन कहते हैं, "शराबबंदी बेशक एक अच्छी पहल थी. इसका शुरुआती फायदा मिला. लेकिन जिस तरह से इसे लागू करना चाहिए और सभी हितधारकों से जुड़ाव रखना चाहिए... नीतीश सरकार उस काम में पीछे रह गई.
नशा मुक्ति भारत के इस अभियान में शराबबंदी मददगार होती है. हमने बंदी तो लागू कर दी, लेकिन उसके आगे-पीछे के रास्तों पर कोई काम नहीं किया. फिर जब खामियां उजागर हुईं, तो जाहिर तौर पर जिम्मेदारी राज्य सरकार की बनती है."

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