पुरातत्व विभाग (एएसआई) की टीम मुरादाबाद पहुंच चुकी है और शुक्रवार को संभल का दौरा कर मंदिर और कुएं की कार्बन डेटिंग कर सकती है. बताया जा रहा है कि यह मंदिर 1978 का है. अब पुरातत्व विभाग इसकी सटीक उम्र और ऐतिहासिक महत्व का पता लगाने के लिए जांच करेगा.
यह मामला उस समय सामने आया जब संभल में हिंसा के बाद उपद्रवियों की तलाश में पुलिस ने सर्च ऑपरेशन चलाया. इस दौरान बिजली चोरी का मामला तो उजागर हुआ ही, लेकिन 14 दिसंबर को दीपा राय इलाके में जांच के दौरान पुलिस को एक पुराना मंदिर मिला.
महादेव मंदिर को 46 वर्षों के बाद खोला गया था
संभल जिले में 46 वर्षों तक बंद रहने के बाद पिछले सप्ताह खोले गये भस्म शंकर मंदिर के कुएं में तीन खंडित मूर्तियां मिली हैं. श्री कार्तिक महादेव मंदिर (भस्म शंकर मंदिर) को 13 दिसंबर को पुनः खोल दिया गया था, जब अधिकारियों ने कहा था कि अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान उन्हें यह ढांचा मिला था.
मंदिर में भगवान हनुमान की मूर्ति और शिवलिंग स्थापित था. यह 1978 से बंद था. मंदिर के पास एक कुआं भी है जिसे अधिकारियों ने फिर से खोलने की योजना बनाई थी.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, संभल में 1978 में हुए दंगे में काफी लोग मारे गए थे. इलाके में दहशत थी. इसके बाद मंदिर के पंडित अपना घर बेचकर चले गए और मंदिर में ताला लगा गए.
क्या है कार्बन डेटिंग?
कार्बन डेटिंग (Carbon Dating) एक वैज्ञानिक तकनीक है, जिसका उपयोग प्राचीन जीवाश्मों, वस्तुओं, और निर्माणों की सटीक उम्र का पता लगाने के लिए किया जाता है. यह प्रक्रिया रेडियोकार्बन (C-14) नामक कार्बन के समस्थानिक पर आधारित है, जो सभी जीवित प्राणियों और पौधों में मौजूद होता है. वैज्ञानिक इस क्षय की दर को मापकर यह पता लगाते हैं कि वस्तु या अवशेष कितने पुराने हैं. यह तकनीक 50,000 साल तक पुराने जैविक पदार्थों की उम्र का सटीक अनुमान लगाने में सक्षम है.
मंदिर, कुएं, या किसी भी पुरातात्विक स्थल की कार्बन डेटिंग से उसकी निर्माण तिथि और ऐतिहासिक महत्व का सटीक निर्धारण किया जा सकता है. संभल के मंदिर मामले में भी पुरातत्व विभाग इस तकनीक का उपयोग करके यह जांच करेगा कि मंदिर का निर्माण वास्तव में 1978 में हुआ था या यह उससे अधिक पुराना है.
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