Explainer: डोनाल्‍ड ट्रंप के वो फैसले जिन्‍होंने मचाई हलचल, जानिए भारत सहित दुनिया को कैसे करेंगे प्रभावित - G.News,ALL IN ONE NEWS BRAKING NEWS , NEWS , TOP BRAKING NEWS, G.News, HINDI NEWS top braking news,

G.News,ALL IN ONE NEWS  BRAKING NEWS , NEWS , TOP BRAKING NEWS, G.News, HINDI NEWS top braking news,

ALL IN ONE NEWS BRAKING NEWS , NEWS , TOP BRAKING NEWS, G.News, HINDI NEWS top braking news, india tv ,news , aaj tak , abp news, zews

Breaking News

ads

Post Top Ad

Responsive Ads Here

90% off

Tuesday, 21 January 2025

Explainer: डोनाल्‍ड ट्रंप के वो फैसले जिन्‍होंने मचाई हलचल, जानिए भारत सहित दुनिया को कैसे करेंगे प्रभावित

अमेरिका में फिर एक बार ट्रंप सरकार आ गई है. रिपब्लिकन डोनाल्‍ड ट्रंप चुनाव में शानदार जीत हासिल कर अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बने हैं. शपथ लेने से पहले ही वो अमेरिका के आने वाले दिनों का खाका खींच चुके थे और शपथ लेने के फौरन बाद उन्होंने उस खाके में अपनी पसंद के रंग भी भर दिए. शपथ लेने के बाद से वो बाइडेन सरकार की 78 नीतियों को रद्द कर चुके हैं. कई नए फैसलों के लिए एग्‍जीक्‍यूटिव ऑर्डर जारी कर चुके हैं और कई पाइपलाइन में हैं. ट्रंप दुनिया के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति हैं और उनके हर फ़ैसले का असर दुनिया भर में होता है. एनडीटीवी एक्स्प्लेनर में आज ऐसे ही कुछ फैसलों पर विस्तार से बात जो दुनिया और भारत को काफ़ी प्रभावित करने वाले हैं. 

Latest and Breaking News on NDTV

अमेरिका में अवैध आप्रवासियों की शामत

अवैध आप्रवासियों को लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप की सख्‍ती किसी से छुपी नहीं है. उन्हें लगता है कि अमेरिका की मेहनत का पैसा अवैध आप्रवासियों को पालने में लग रहा है. अमेरिका की सीमाओं से होने वाली मानव तस्करी को ख़त्म करने की वो ठान चुके थे और सत्ता में आते ही उन्होंने सबसे शुरुआती फ़ैसलों में इसी पर अमल किया. अपने पहले भाषण में सबसे पहले मुद्दे के तौर पर उन्होंने इसी का ज़िक्र किया और अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए अमेरिका की दक्षिणी सीमाओं पर इमरजेंसी लगा दी.

शपथ ग्रहण के बाद डोनाल्‍ड ट्रंप ने अपने पहले संबोधन में कहा, "सबसे पहले मैं अमेरिका की दक्षिणी सीमा पर राष्ट्रीय इमरजेंसी का एलान करता हूं. हर ग़ैर क़ानूनी प्रवेश तुरंत रोका जाएगा. हम लाखों आपराधिक विदेशियों को वापस उस जगह भेजने की प्रक्रिया शुरू करेंगे जहां से वो आए थे. मैं अपनी 'रिमेन इन मेक्सिको' पॉलिसी बहाल करूंगा. मैं गिरफ़्तार कर छोड़ देने की प्रक्रिया ख़त्म करूंगा. मैं दक्षिणी सीमाओं पर सेना को भेजूंगा ताकि वहां से हमारे देश पर ख़तरनाक आक्रमण को पलटा जा सके.  

Latest and Breaking News on NDTV

मेक्सिको अमेरिका के दक्षिण में है और दोनों देशों की सीमाएं आपस में लगती हैं. इसलिए अमेरिका में सबसे ज़्यादा आप्रवासी भी मेक्सिको के रास्ते ही आते हैं और मेक्सिको से ही आते हैं. अमेरिका में लगभग हर चौथा आप्रवासी मेक्सिको का है. 2022 में मेक्सिको से आए एक करोड़ छह लाख आप्रवासी अमेरिका में थे. इनमें से कई वैध तौर पर अमेरिका में रहते हैं और कई अवैध तौर पर अपनी ज़िंदगी बेहतर करने का सपना लिए अमेरिका में घुसते हैं. उन्हें अमेरिका की सीमा में प्रवेश दिलाने के लिए कई संगठित गिरोह भी काम करते हैं. डोनल्ड ट्रंप अवैध आप्रवासियों को अमेरिका के संसाधनों पर बोझ मानते रहे हैं. डोनल्ड ट्रंप के फ़ैसले का तुरंत असर ये हुआ कि जो बाइडेन सरकार में शरण मांगने की प्रक्रिया से जुड़ा ऐप ही बंद कर दिया गया. इसके तहत 30 हज़ार एपाइंटमेंट लिए गए थे. ट्रंप के सलाहकार स्टीफ़न मिलर ने कहा कि दरवाज़े बंद हो गए हैं. अमेरिका में घुसने की इच्छा रखने वाले अवैध विदेशियों को अब वापस चले जाना चाहिए.

Latest and Breaking News on NDTV

इसी के साथ डोनाल्‍ड ट्रंप ने मेक्सिको में अवैध नशे से जुड़े संगठित गिरोहों को भी आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया. डोनाल्‍ड ट्रंप ने सत्ता संभालते ही जो एक और बड़ा फ़ैसला लिया है वो बर्थराइट सिटिज़नशिप यानी जन्मसिद्ध नागरिकता को निशाने पर लेता है. 

भारतीय-अमेरिकियों का भी प्रभावित होना तय

अवैध आप्रवासियों पर नकेल कसने के इरादे से ट्रंप ने ये आदेश भी जारी किया है. हालांकि इसका असर उन आप्रवासियों पर भी पड़ना तय है जो अमेरिका में वैध तरीके से रह रहे हैं. जैसे लाखों भारतीय-अमेरिकी भी इससे प्रभावित होंगे जिनमें से कई लोग सालों और दशकों से अमेरिका में नागरिकता की पहचान ग्रीन कार्ड का इंतज़ार कर रहे हैं. दरअसल बात ये है कि अभी अमेरिका में पैदा हुए हर बच्चे को स्वत: अमेरिका का नागरिक मान लिया जाता है. ट्रंप और उनके सलाहकारों का मानना है कि अवैध आप्रवासियों ने अमेरिका के इस क़ानून का काफ़ी दुरुपयोग किया है. इसीलिए ट्रंप के एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर के निशाने पर अमेरिका के संविधान का 14वां संशोधन है.

Latest and Breaking News on NDTV

ये संशोधन कहता है कि संयुक्त राज्य अमेरिका में जन्मे या प्राकृतिक रूप से बसे सभी व्यक्तियों को अमेरिका और उस राज्य का नागरिक माना जाएगा जहां वो रहते हों. 

अमेरिका के संविधान में ये संशोधन 1868 में कई अन्यायों को ख़त्म करने के लिए किया गया था जो अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के 1857 के एक फ़ैसले के बाद तेज़ हुए. उस फ़ैसले से काले गुलामों के बच्चों को नागरिकता पर रोक लग गई थी, लेकिन 1868 के क़ानून से ये अन्याय ख़त्म हुआ. 

1898 में अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने इसी क़ानून के तहत एक ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया. चीन के एक आप्रवासी दंपति के सैन फ्रांसिस्को में जन्मे बेटे को नागरिकता प्रदान कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ग़ैर नागरिक दंपती के अमेरिकी ज़मीन पर पैदा हुए बच्चों को अमेरिकी नागरिक माना जाएगा.  

Latest and Breaking News on NDTV

14वें संशोधन पर क्‍या कहते हैं ट्रंप

अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा चौदहवें संशोधन की ये व्याख्या आज भी क़ायम है जिससे ट्रंप और उनके समर्थक सहमत नहीं हैं. ट्रंप का आदेश इस संशोधन की फिर से समीक्षा की कोशिश है. 

ट्रंप ने अपने आदेश में कहा है कि 14वें संशोधन का ये मतलब कभी नहीं था कि अमेरिका में पैदा होने वाले हर व्यक्ति को नागरिकता दे दी जाए. ट्रंप का ज़ोर इस बात पर है कि अमेरिका में बिना दस्तावेज़ रह रहे दंपती के अमेरिका में पैदा हुए बच्चों को स्वत: नागरिकता नहीं दी जाएगी. ट्रंप के आदेश से ये सुनिश्चित होगा कि अमेरिका मे पैदा हुए वो बच्चे स्वत: वहां के नागरिक नहीं माने जाएंगे जिनके कम से कम माता या फिर पिता में से कोई एक अमेरिका का क़ानूनी नागरिक न हो यानी माता-पिता में से किसी एक का अमेरिकी नागरिक होना ज़रूरी होगा तभी बच्चे को स्वत: नागरिक माना जाएगा. 

हालांकि आलोचकों की दलील है कि इस कदम से अमेरिका के कमज़ोर समुदाय और भी हाशिए पर चले जाएंगे और आप्रवासियों के परिवारों में अनिश्चितता बढ़ जाएगी. इस नीति के नतीजे दूरगामी होंगे जिसका असर स्कूलों से लेकर नौकरी करने की जगहों और समुदायों के अंदर दिखेगा. ट्रंप का आदेश जारी होने के 30 दिन बाद इस नीति में बदलाव अमल में आएगा. हालांकि इस आदेश को अदालतों में चुनौती मिलनी तय है. इस नीति का एक बड़ा असर उन लोगों पर पड़ेगा जो बर्थ ट्यूरिज्‍म यानी पर्यटन के दौरान जन्म को अमेरिका में अपने बच्चों की नागरिकता पाने का तरीका मानते हैं. ये भी तथ्य है कि अमेरिका में कई देशों के प्रवासी समुदायों के बीच ये काफी पसंदीदा तरीका रहा है, लेकिन ट्रंप सरकार की नीतियां इस चलन को खत्म करने की कोशिश हैं.

अमेरिका के सेंसस ब्यूरो के मुताबिक वहां इस समय क़रीब 50 लाख भारतीय अमेरिकी हैं, जो अमेरिका की जनसंख्या का 1.47 फीसदी हैं. इनमें से सिर्फ़ 34 फीसदी अमेरिका में पैदा हुए हैं और बाकी दो तिहाई आप्रवासी हैं. अमेरिका में काम कर रहे अधिकतर भारतीय वहां H1-B visa के आधार पर काम कर रहे हैं. इस दौरान वहां पैदा होने वाले भारतीय मूल के बच्चों को अब स्वत: अमेरिका की नागरिकता नहीं मिल पाएगी. 

अमेरिका की सिविल लिबर्टीज़ यूनियन (ACLU) ने ट्रंप के इस एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर पर चिंता जताई है और कहा है कि 14वें संशोधन में बर्थराइट सिटिजनशिप को लेकर भाषा बिलकुल स्पष्ट रही है. ACLU को डर है कि इस आदेश के बाद अमेरिका से बडे़ पैमाने पर लोगों को वापस उनके देश भेजने का क्रम शुरू न हो जाए. इससे परिवार भी बंटेंगे और मानवीय अधिकारों का हनन भी होगा.

Latest and Breaking News on NDTV

पेरिस समझौते के भी खिलाफ ट्रंप

एक तरफ़ जब दुनिया में ग्लोबल वॉर्मिंग सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किए जाने वाले शब्दों में शुमार हो चुका है, जब हर साल दुनिया पहले से ज़्यादा गर्म होती जा रही है. हर साल दुनिया के औसत तापमान का रिकॉर्ड टूट रहा है. पेरिस समझौते में तय की गई डेढ़ डिग्री तापमान की सीमा दरकती जा रही है तो पेरिस समझौते को ही खारिज करने की बात आसानी से समझ में नहीं आती,  लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लगता है कि इसकी परवाह नहीं है. 
 
उन्होंने सत्ता संभालते ही अपने एक आदेश से अमेरिका को पेरिस समझौते से बाहर निकाल दिया, जिसे क़रीब 200 देशों ने मिलकर तय किया था. ट्रंप अपने पहले दौर में भी ऐसा फ़ैसला ले चुके थे जिसे चार साल बाद जो बाइडेन ने पलट दिया था. अपने पहले भाषण में ट्रंप ने पेरिस समझौते का ज़िक्र तो नहीं किया लेकिन साफ़ कर दिया था कि वो ऐसी ऊर्जा नीतियों को पलट देंगे जिन्हें आबोहवा के लिए अच्छा माना जाता है, लेकिन जिनकी वजह से अमेरिकी की ऊर्जा ज़रूरतों पर उलटा असर पड़ा है. 

डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, "अमेरिका फिर विनिर्माण में अग्रणी देश बनेगा. हमारे पास वो है जो विनिर्माण में लगे किसी और देश के पास कभी नहीं होगा. धरती में सबसे ज़्यादा तेल और गैस हमारे पास है. हम उसे इस्तेमाल करेंगे. हम दाम कम करेंगे. अपने सामरिक रिज़र्व फिर भरेंगे. हम अमेरिका की ऊर्जा पूरी दुनिया में भेजेंगे. हम फिर अमीर देश बनेंगे. हमारे पैरों के नीचे तरल सोना इसमें हमारी मदद करेगा."

हालांकि पारंपरिक ईंधन के धड़ल्ले से इस्तेमाल का डोनाल्‍ड ट्रंप का फैसला क्लाइमेट चेंज से लड़ने की दुनिया की कोशिशों के लिए बड़ा ख़तरा होने जा रहा है. 

Latest and Breaking News on NDTV


2015 के पेरिस समझौते के लिए संयुक्त राष्ट्र क्लाइमेट समिट के तहत दुनिया के 196 देश पेरिस में जुटे थे और उन्होंने वैश्विक तापमान को 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध जिसे पूर्व औद्योगिक युग कहा गया उसके औसत तापमान से डेढ़ डिग्री तक ही सीमित रखने के लिए कदम उठाने पर समझौता किया था. इसके तहत हर देश को ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए ज़िम्मेदार कार्बन उत्सर्जन की अपनी-अपनी सीमाएं तय करनी थीं. 
 
अपने पहले दौर में पेरिस समझौते से पीछे हटने के बाद बाइडेन सरकार ने उस फ़ैसले को पलटा और दिसंबर 2024 में एक नया महत्वाकांक्षी लक्ष्य अपने लिये तय किया. अमेरिका ने कहा कि वो 2035 तक अपने कार्बन उत्सर्जन को 2005 के मुक़ाबला 66% कम कर देगा, लेकिन एक महीने में ही ट्रंप ने इस दावे से अमेरिका को अलग कर लिया है. 

Latest and Breaking News on NDTV

क्‍यों चिंता बढ़ा रहा ट्रंप का फैसला?

ट्रंप के फ़ैसले के बाद पेरिस समझौते के तहत 2030 तक दुनिया में कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्यों को हासिल करना तो संभव नहीं ही होगा उलटा लक्ष्यों से दूर रहने का अंतर बहुत बड़ा हो जाएगा. दुनिया में इस समय चीन के बाद अमेरिका सबसे ज़्यादा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है जो आबोहवा को गर्म बनाती हैं, लेकिन ट्रंप अमेरिका में औद्योगीकरण और निर्माण को बढ़ावा देने के तहत न केवल मौजूदा तेल, गैस उत्पादन को बढ़ावा देना चाहते हैं बल्कि तेल, गैस के नए कुओं को भी खोलने का रास्ता साफ़ करने जा रहे हैं. पेरिस समझौते के तहत अमेरिका को कार्बन उत्सर्जन कम करते जाना था लेकिन ट्रंप ने उस समझौते को ही ख़त्म कर दिया, लेकिन अब ट्रंप के अगले चार साल में यानी 2029 तक कार्बन उत्सर्जन कम होने के बजाय बढ़ता ही दिख रहा है जो दुनिया की सेहत के साथ खिलवाड़ से कम नहीं माना जा रहा. एक साल बाद पेरिस समझौते से पीछे हटने का ट्रंप का आदेश अमल में आ जाएगा. 

अब दुनिया में एक चिंता ये भी है कि अमेरिका की देखादेखी दुनिया के कुछ और देश ऐसा ही फ़ैसला न कर लें. 

साल 2024 जाते जाते बता गया है कि जबसे इतिहास में रिकॉर्ड रखे जाने शुरू हुए हैं तब से वो साल सबसे गर्म साल रहा है. जब पेरिस समझौते में तय डेढ़ डिग्री तापमान की सीमा टूट गई. ग्लोबल वॉर्मिंग के इस असर को हर देश महसूस कर रहा है. जिस तरह की अति मौसमी घटनाएं हो रही हैं, कई अतिवृष्टि तो कहीं सूखा, बेमौसमी तूफ़ान. इस सबका आर्थिक, सामाजिक, मानवीय असर बहुत गहरा होने वाला है. दुनिया के कई देशों का तो अस्तित्व ही समुद्र में मिल जाएगा. इसलिए ग्लोबल वॉर्मिंग को नज़रअंदाज़ करना ठीक नहीं. 
 
उम्मीद है कभी कोई अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को ये बात समझाने में कामयाब रहेगा. फिलहाल तो ऐसा लग नहीं रहा.

Latest and Breaking News on NDTV

WHO से बाहर होने का आदेश

डोनाल्ड ट्रंप के कुछ आदेशों में ये भी साफ़ झलकता है कि वो दुनिया की कई बड़ी संस्थाओं को या तो निकम्मा मानते हैं या अमेरिकी हितों के ख़िलाफ़ जो दुनिया में शांति, व्यवस्था, स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित करने के लिए बनाई गईं. इनमें से एक है 7 अप्रैल 1948 को बना WHO यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन.   

ट्रंप ने अपने एक एग्ज़ीक्यूटिव ऑर्डर से अमेरिका को निर्देश दिया है कि वो WHO से बाहर हो जाए. अपने आदेश में ट्रंप ने कहा कि अमेरिका द्वारा WHO को भविष्य में किसी भी तरह के फंड, सहयोग या संसाधन भेजने पर रोक लगा दी जाए. दरअसल, ट्रंप कोविड महामारी से निपटने के मुद्दे पर WHO की हर मंच पर आलोचना करते रहे हैं. ट्रंप ने शपथ लेने के कुछ घंटे बाद कहा कि अमेरिका संयुक्त राष्ट्र की इस संस्था को चीन के मुक़ाबले ज़्यादा पैसा देता रहा है लेकिन इसने हमें ठगा है. 
 
दरअसल दुनिया का हर वैश्विक मंच सभी देशों के अंशदान पर काम करता है. अमीर देश ज़्यादा पैसा देते रहे हैं. ये तथ्य है कि जेनेवा स्थित WHO के काम के लिए अमेरिका सबसे ज़्यादा वित्तीय सहयोग देता रहा है, जो दुनिया के विकसित देशों का कर्तव्य भी है, जिन्होंने विकासशील देशों की क़ीमत पर संसाधनों का सबसे ज़्यादा दोहन किया और प्रदूषण फैलाया. 

Latest and Breaking News on NDTV

2022 के आंकड़ों के मुताबिक अमेरिका ने WHO को सबसे अधिक 109 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का सहयोग दिया. दूसरे स्थान पर दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन रही जिसने 57 मिलियन डॉलर से ज़्यादा का अंशदान दिया. हालांकि ट्रंप को लगता है कि अमेरिका को अपने सहयोग की तुलना में WHO का सहयोग कम मिलता है. इसलिए उन्होंने उससे बाहर होने का फ़ैसला लिया, लेकिन WHO ने ट्रंप के इस फ़ैसले पर अफ़सोस जताया है. 
 
जेनेवा में WHO के प्रवक्ता ने कहा WHO अमेरिकी लोगों समेत पूरी दुनिया के लोगों के स्वास्थ्य को बचाने और सुरक्षा में अहम भूमिका निभाता है. हमें उम्मीद है कि अमेरिका अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार करेगा. हम दुनिया भर के करोड़ों लोगों के स्वास्थ्य के हित में अमेरिका और WHO के बीच भागीदारी बनाए रखने के लिए एक सकारात्मक बातचीत की उम्मीद कर रहे हैं. 

Latest and Breaking News on NDTV

WHO के कामकाज पर असर पड़ने की आशंका

हालांकि इस आदेश के बाद भी अमेरिका को WHO से बाहर आने की प्रक्रिया में एक साल लगेगा. अमेरिका के पीछे हटने से WHO के काम पर काफ़ी असर पड़ने की आशंका है और दुनिया भर में उसकी स्वास्थ्य योजनाओं के बिगड़ने की आशंका है.  डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरी बार ऐसा किया है. अपने पहले दौर में भी उन्होंने WHO से पीछे हटने का आदेश जारी किया था जिसे बाद में बाइडेन प्रशासन ने पलट दिया था. उधर चीन का कहना है कि वो WHO को सहयोग जारी रखेगा. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि WHO को मज़बूत किए जाने की ज़रूरत है, कमज़ोर नहीं. 
 
ट्रंप के इस आदेश का अमेरिका में ही काफ़ी विरोध हो रहा है. बराक ओबामा सरकार में रहे एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी टॉम फ्रीडन के मुताबिक WHO से पीछे हटने से उसे ज़्यादा प्रभावी नहीं बनाया जा सकता. इस फ़ैसले से अमेरिका के प्रभाव पर असर पड़ेगा, भयानक महामारी का ख़तरा बढ़ जाएगा और ये फ़ैसला हम सभी को कम सुरक्षित कर रहा है.  

जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के पब्लिक हेल्थ लॉ के प्रोफ़ेसर लॉरेंस गोस्टिन के मुताबिक, दवाओं को पहले हासिल करने के बजाय अब हम कतार में पीछे रह जाएंगे. WHO से हटना अमेरिका की सुरक्षा और नायाब कोशिशों में हमारी बढ़त को एक गहरा घाव साबित होगा. 

अमेरिका WHO से ऐसे समय हट रहा है जब वहां बर्ड फ़्लू H5N1 के महामारी के तौर पर फैलने का डर बना हुआ है. बर्ड फ़्लू से वहां कई लोग संक्रमित हैं और एक व्यक्ति की मौत तक हो चुकी है. 

Latest and Breaking News on NDTV

LGBTQ+ लोगों के लिए बड़ा झटका

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता में आते ही एक और आदेश दिया जो दुनिया में अपनी लैंगिक पहचान हासिल करने की कोशिश में लगे करोड़ों LGBTQ+ लोगों के लिए बड़े झटके से कम नहीं है. अपने एक अहम आदेश में ये साफ़ कर दिया कि अमेरिका में अब सिर्फ़ दो ही लिंगों को मान्यता होगी. पुरुष और महिला यानी मेल और फीमेल.  इसे लेकर डोनाल्‍ड ट्रंप ने अपने शपथ ग्रहण के बाद पहले संबोधन में कहा कि आज से अमेरिका की ये आधिकारिक नीति होगी कि सिर्फ़ दो ही लिंग होंगे. पुरुष या महिला. 

ट्रंप के आदेश में कहा गया है कि लिंग कभी बदल नहीं सकते. वो एक ऐसी असलियत हैं जो बुनियादी हैं. व्हाइट हाउस के अधिकारियों के मुताबिक ये आदेश बायोलॉजिकल ट्रुथ यानी जैविक सत्य को बहाल करने के लिए है और लैंगिक विचारधारा के अतिवाद का मुक़ाबला करने के लिए है. 

इस आदेश के साथ ही डोनल्ड ट्रंप ने बाइडेन प्रशासन की उन कोशिशों को पलट दिया है, जिसके तहत वहां लैंगिक पहचान को व्यापक बनाने की कोशिश की जा रही थी और इसे पासपोर्ट पर भी दर्ज किया जा रहा था. हालांकि लैंगिक पहचान को लेकर ट्रंप सरकार के आदेश पर तीखी प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. आलोचकों का कहना है कि ये आदेश सालों से LGBTQ+ लोगों के अधिकारों को हासिल करने की कोशिश में एक बड़ी बाधा बन जाएगा. उनके साथ नए सिरे से भेदभाव शुरू हो जाएगा. ऐसा आदेश LGBTQ+ समुदाय के प्रति लोगों के रुख़ को प्रभावित करेगा. ख़बर ये है कि ट्रंप के इस आदेश के बाद ऑस्ट्रेलिया में भी कुछ राजनीतिक दलों ने इसी दिशा में अमल की मांग की है. 

कैसा विरोधाभास है कि डोनाल्ड ट्रंप का ये आदेश अमेरिका में मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली महान शख़्सियत मार्टिन लूथर किंग जूनियर डे पर आया. जो सभी अमेरिकी लोगों को बराबर मानने और काले लोगों के अधिकारों के लिए लड़े. अब देखना है कि डोनाल्ड ट्रंप के ताज़ा आदेश अमेरिका में बराबरी को बढ़ावा देंगे या ग़ैर बराबरी को.



from NDTV India - Pramukh khabrein https://ift.tt/ctVL2n1

No comments:

Post a Comment

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here

Pages