Trump Tariff War: क्या China, Mexico, Canada पर भारी टैरिफ़ भारत के लिए बड़ा मौका? - G.News,ALL IN ONE NEWS BRAKING NEWS , NEWS , TOP BRAKING NEWS, G.News, HINDI NEWS top braking news,

G.News,ALL IN ONE NEWS  BRAKING NEWS , NEWS , TOP BRAKING NEWS, G.News, HINDI NEWS top braking news,

ALL IN ONE NEWS BRAKING NEWS , NEWS , TOP BRAKING NEWS, G.News, HINDI NEWS top braking news, india tv ,news , aaj tak , abp news, zews

Breaking News

ads

Post Top Ad

Responsive Ads Here

90% off

Thursday, 6 March 2025

Trump Tariff War: क्या China, Mexico, Canada पर भारी टैरिफ़ भारत के लिए बड़ा मौका?

युद्ध सिर्फ़ हथियारों से ही नहीं लड़े जाते, टैक्स और टैरिफ़ के ज़रिए व्यापार और कारोबार की दुनिया में भी लड़े जाते हैं. हथियारों से विश्व युद्ध की आशंका से डरी दुनिया में टैरिफ़ वर्ल्ड वॉर शुरू हो चुका है. और इसका ऐलान ख़ुद दुनिया के सबसे ताक़तवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप कर चुके हैं. ट्रंप को लगता है कि दुनिया ने अमेरिका का फ़ायदा ही उठाया, बदले में उसे कोई फ़ायदा नहीं दिया.

मूल रूप से एक कारोबारी डोनल्ड ट्रंप अब इसका बदला लेना चाहते हैं, एक दो देशों से नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों से. भारत भी उनमें शामिल है. ट्रंप के इन तेवरों से दुनिया के ताक़तवर देश भी चुुप नहीं बैठने वाले. वो भी जवाबी कार्रवाई करेंगे बल्कि उन्होंने ये जवाबी कार्रवाई शुरू भी कर दी है. लेकिन भारत इस मामले में संभलकर आगे बढ़ रहा है. ट्रंप की टैरिफ़ वॉर का क्या असर होगा ख़ासतौर पर भारत में. यहां ऑटो सेक्टर कैसे प्रभावित होगा. ऑटो सेक्टर से जुड़े उपभोक्ताओं को क्या फ़ायदा होगा. इस सब पर करेंगे हम बात.

डोनल्ड ट्रंप ने अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र में अपने पहले भाषण में बहुत ही जो़रदार तरीके से कहा कि दूसरे देश दशकों से अमेरिका के ख़िलाफ़ टैरिफ़ का इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि अमेरिका उन पर कम टैरिफ़ लगाता रहा है. इस तरह ये देश अमेरिका का फ़ायदा उठा रहे हैं. ट्रंप ने कहा कि 2 अप्रैल से अमेरिका जवाबी टैरिफ़ की शुरुआत करेगा. इसका मतलब ये है कि भारत से अमेरिका को होने वाले निर्यात पर ड्यूटी बढ़ जाएगी.

टैरिफ़ के मामले में अमेरिका का सबसे बड़ा व्यापार युद्ध वैसे चीन के साथ चलने जा रहा है और उसके बाद कनाडा और मैक्सिको के साथ. लेकिन भारत पर भी इस टैरिफ़ वॉर की चिंगारियां पड़नी तय हैं. प्रधानमंत्री मोदी के साथ डोनल्ड ट्रंप की ख़ास घनिष्ठता है, इसके बावजूद ट्रंप 2 अप्रैल से भारतीय सामान पर टैरिफ़ बढ़ाने जा रहे हैं.

ट्रंप ने ये ऐलान ऐसे समय किया है जब वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल अमेरिका के दौरे पर हैं और भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय व्यापार को 2030 तक मौजूदा व्यापार से दोगुने से ज़्यादा यानी क़रीब 500 अरब डॉलर तक बढ़ाने के लिए एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत शुरू होने वाली है. मंगलवार को उनकी अमेरिका के वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक से बातचीत हो चुकी है.

 

हमारे सहयोगी हिमांशु शेखर से बातचीत में Federation of Indian Export Organizations के सीईओ अजय सहाय ने कहा कि ट्रंप का ऐलान व्यापार वार्ता के दौरान दबाव बढ़ाने की रणनीति हो सकती है.

Federation of Indian Export Organizations के आकलन के मुताबिक अमेरिका अगर टैरिफ़ बढ़ाता है इसका सबसे ज़्यादा असर ऑटो कम्पोनेंट सेक्टर यानी गाड़ियां बनाने से जुड़े उपकरणों के सेक्टर और जेम्स एंड ज्वेलरी सेक्टर पर हो सकता है. भारत से अमेरिका को एक्सपोर्ट में ऑटो कम्पोनेंट सेक्टर का बड़ा हिस्सा है. भारत से निर्यात होने वाले 21 अरब डॉलर के कम्पोनेंट्स मे से एक तिहाई से ज़्यादा यानी 7.6 अरब डॉलर के ऑटो पार्ट्स अमेरिका को निर्यात होते हैं.

भारत अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार में टैरिफ़ में सबसे ज़्यादा अंतर यानी duty differential ऑटो कम्पोनेंट सेक्टर में है जो 23% है.  इसका मतलब ये है कि अमेरिका जितना टैरिफ़ इन कंपोनेंट्स पर लगाता है उसके मुक़ाबले हम 23% ज़्यादा टैरिफ़ लगाते हैं.

ऐसे में अगर ट्रंप प्रशासन ऑटो कॉम्पोनेंट प्रोडक्ट्स पर टैरिफ़ बढ़ाता है तो ऑटो कम्पोनेंट सेक्टर का निर्यात प्रभावित होगा. भारत से अमेरिका को सबसे ज्यादा निर्यात Gems & Jewellery सेक्टर में होता हैऔर इस सेक्टर में अभी ड्यूटी डिफरेंशियल 13.1% है..अगर अमेरिका इस सेक्टर में टैरिफ़ बढ़ाता है तो Gems & Jewellery के निर्यात पर असर पड़ सकता है.

अमेरिका के रुख़ को देखते हुए भारत सरकार ने पहले ही अमेरिका से आयात होने वाले कुछ उत्पादों जैसे Bournbon व्हिस्की, हार्ले डेविडसन और कुछ महत्वपूर्ण केमिकल्स पर ड्यूटी घटाई है. लेकिन अमेरिका के लिए इतना काफ़ी नहीं है. जबकि सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ इंडायरेक्ट टैक्सेज और कस्टम्स के मुताबिक भारत में अमेरिका से जिन महत्वपूर्ण उत्पादों का आयात किया जाता है उन पर टैरिफ़ या तो बहुत कम है या बिल्कुल नहीं है.

  1. क्रूड ऑयल यानी कच्चे तेल पर नहीं के बराबर ड्यूटी है
  2. Coal पर 2.5% है
  3. डायमंड पर 0% से 2.5% है
  4. पेट्रोकेमिकल्स पर आयात कर 7.5%
  5. और LNG पर 5% है

ऐसे में ट्रंप के टैरिफ़ वॉर का सबसे ज़्यादा असर अगर पड़ेगा तो ऑटो कम्पोनेंट सेक्टर और जेम्स एंड ज्वूलरी सेक्टर पर पड़ेगा. अमेरिका की एक बड़ी शिकायत ये भी रही है कि भारत आयातित कारों पर 110% तक आयात कर लगाता है जो उसे घटाना होगा.

कार कंपनी टेस्ला के सीईओ इलॉन मस्क इस टैरिफ़ की आलोचना कर इसे दुनिया में सबसे ज़्यादा बताते रहे हैं. इसे अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप का भी समर्थन मिला है. अमेरिका लगातार भारत पर इस बात के लिए दबाव बनाता रहा है कि वो आयातित कारों पर टैरिफ़ को हटाए, लेकिन भारत इसे तुरंत पूरी तरह ख़त्म करने को तैयार नहीं है हालांकि इसे कम करने के लिए बातचीत का इच्छुक है.

अगर भारत टैरिफ़ घटाता है तो इसका इलॉन मस्क की इलेक्ट्रिक कार व्हीकल कंपनी टेस्ला समेत अमेरिका की तमाम कार कंपनियों को फ़ायदा होगा. टेस्ला ने पिछले साल भारतीय बाज़ार में उतरने के फ़ैसले पर रोक लगा दी थी लेकिन अब वो भारतीय बाज़ार में उतरने की नए सिरे से तैयारी कर रही है. इस दिशा में टेस्ला ने मुंबई में अपना पहला शोरूम खोलने के लीज़ डीड साइन कर दी है जहां से वो भारत में आयात की गई अपनी कारों को बेचेगा. ख़बरों के मुताबिक टेस्ला मुंबई के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स में Maker Maxity बिल्डिंग में शोरूम खोल रहा है. टेस्ला ने इस सिलसिले में भारत में नियुक्तियां भी शुरू कर दी हैं.

भारतीय कार कंपनियों की फैक्टरियां जैसे महिंद्रा एंड महिंद्रा, टाटा मोटर्स, मारुति सुज़ुकी, लेकिन टैरिफ़ घटाने के मामले में भारत कोई भी फ़ैसला जल्दबाज़ी में नहीं लेगा और उससे पहले स्थानीय उद्योगों से विचार विमर्श करेगा. पिछले महीने भी सरकार ने कार निर्माता कंपनियों के साथ बातचीत में टैरिफ़ में संभावित कटौती पर उनकी चिंताओं को समझा था. भारत दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा कार निर्माता है. भारतीय कार कंपनियां सालाना क़रीब 40 लाख कारें बनाती हैं. इनमें से कारों का एक बड़ा हिस्सा विदेशों को निर्यात किया जाता है. भारतीय कार कंपनियां आयातित कारों के लिए टैरिफ़ घटाने की विरोधी रही हैं. उनकी दलील है कि अगर विदेशों से सस्ती कारें भारत में आयात हुईं तो स्थानीय निर्माण में निवेश में कमी आएगी. टाटा मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा संभावित टैरिफ़ कटौती को लेकर चिंता जता चुके हैं, ख़ासतौर पर इलेक्ट्रिक व्हीकल सेगमेंट में जहां इन कंपनियों ने पिछले कुछ सालों में अपना निवेश काफ़ी बढ़ा दिया है. उनकी दलील है कि आयात कर घटाने से विदेशी इलेक्ट्रिक गाड़ियां सस्ती हो जाएंगी जिससे भारतीय इलेक्ट्रिक गाड़ियों के उद्योग का विकास प्रभावित होगा.
 

तो सवाल ये है कि अगर टेस्ला की गाड़ियां भारत में आती हैं तो स्थानीय इलेक्ट्रिक गाड़ियों के बाज़ार पर कितना असर पड़ेगा. उपभोक्ताओं को क्या विकल्प मिलेंगे.



ग्लोबल ब्रोकरेज फर्म UBS की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में टेस्ला के उतरने से स्थानीय ईवी मार्केट पर ख़ास असर नहीं पड़ेगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका में टेस्ला की सबसे ज़्यादा बिकने वाली कार Model 3 भारतीय सड़कों के माफ़िक नहीं है क्योंकि उसका ग्राउंड क्लियरेंस काफ़ी कम यानी 138 मिलीमीटर ही है और सीडान डिज़ाइन है. इसकी जगह Model Y भारत के लिए ज़्यादा बेहतर विकल्प हो सकता है जो 50 से 60 लाख रुपए तक में आ सकता है. इसमें 15% की कस्टम्स ड्यूटी भी शामिल है. इससे ये कार High End EV जैसे Kia EV6, BYD Seal और Hyundai Ioniq 5 की टक्कर में आ जाएगी. जो कुल मिलाकर भारत में हर महीने क़रीब 200 यूनिट ही बिकती हैैं. यानी टेस्ला के कारण भारतीय कार बाज़ार पर ऐसा कोई बड़ा असर नहीं दिखेगा. इस बीच भारत की तीन बड़ी कंपनियों महिंद्रा एंड महिंद्रा, टाटा मोटर्स और मारुति सुज़ुकी के शेयरों में हल्की उठापटक ज़रूर दिखी है लेकिन जेफ्रीज़, UBS, CLSA जैसी कई बड़ी ब्रोकरेज फर्म्स के मुताबिक लंबे समय में उनके शेयरों में बढ़त ही दर्ज होगी.
 

इस बीच भारतीय कार कंपनियों को टेस्ला से ज़्यादा चुनौती अगर कहीं से मिलेगी तो वो चीन की कार कंपनियों से जो भारत में इलेक्ट्रिक व्हीकल कार सेगमेंट में उतरने की तैयारी में हैं.



चीन की इलेक्ट्रिक कार कंपनियां जैसे BYD और Leapmotor अपनी गाड़ियों में कई नए फीचर्स के साथ भारतीय बाज़ार में छाने की तैयारी कर रही है.. नए डिज़ाइन, प्रीमियम फीचर्स के साथ ये गाड़ियां भारतीय बाज़ार में उतरने को तैयार है लेकिन फिलहाल भारत पूरी तरह तैयार इलेक्ट्रिक गाड़ियों यानी completely built units पर भारी टैरिफ़ लगाता है जिससे ये गाड़ियां भारतीय बाज़ार में काफ़ी महंगी हो जाती हैं. इसलिए भारतीय बाज़ार में चीनी कारें अभी बहुत कम बिक रही हैं. इससे निपटने के लिए चीन की कंपनियां भारत में ही अपनी इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाने की राह देख रही हैं. Global Trade Research Initiative (GTRI) की एक रिपोर्ट बताती है कि अगर चीनी गाड़ियों को भारत के बाज़ार में पैठ मिली तो कुछ ही साल में भारतीय सड़कों पर हर तीन इलेक्ट्रिक गाड़ियों में से एक गाड़ी किसी चीनी कंपनी की होगी. क्योंकि चीन की कंपनियां क़ीमत के मामले में भारतीय कार कंपनियों को कड़ी टक्कर देंगी. ऊपर से उनके नायाब फीचर भारतीय ख़रीदारों को काफ़ी प्रभावित करेंगे.

बिज़नेस अख़बारों के कई आर्टिकल ये बात कह रहे हैं. इनके मुताबिक भारत को उम्मीद है कि भारत इस टैरिफ़ वॉर का कोई न कोई हल निकाल लेगा. ऑटो उद्योग के जानकारों के हवाले से लिखे गए इन लेखों में कहा गया है कि भारत से बहुत कम गाड़ियां अमेरिका को निर्यात होती हैैं इसलिए जवाबी टैरिफ़ का कोई ख़ास असर भारतीय कंपनियों पर नहीं पड़ेगा. बल्कि जानकार ये कह रहे हैं कि अगर टैरिफ़ कम करने को लेकर भारत अमेरिका के साथ किसी समझौते पर पहुंचता है तो बाकी देश भी इस तरह के सवाल उठाने शुरू कर देंगे. इसलिए इस मामले में अगर भारत टैरिफ़ कम करने पर तैयार होता है तो कार निर्माण से जुड़ी सभी OEM यानी original equipment manufacturers के लिए ये कम होना चाहिए ताकि कार निर्माताओं के बीच किसी तरह भेदभाव न हो. वैसे कई जानकारों का ये भी मानना है कि भारत में ऑटो इंडस्ट्री अब काफ़ी आगे बढ़ चुकी है और अब इम्पोर्ट टैरिफ़ के ज़रिए उसे बचाने पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए. ऑटो इंडस्ट्री को अब ज़्यादा प्रतियोगी होना चाहिए.

अमेरिका से टैरिफ़ के मुद्दे पर भारत बातचीत से मुद्दा सुलझाने की कोशिश कर रहा है लेकिन इस मामले में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप को चीन की ओर से पलटकर उसी तेवर में जवाब मिला है जिस तेवर में ट्रंप बोल रहे हैं. चीन पर अमेरिका ने 10 फीसदी के बाद 10 फीसदी और टैरिफ़ लगाने का एलान किया है. ऐसे में अमेरिका में चीन के दूतावास ने सोशल मीडिया एक्स पर अपने आधिकारिक हैंडल पर कहा कि चीन अमेरिका के साथ किसी भी तरह के युद्ध को अंत तक लड़ने के लिए तैयार है. "अगर अमेरिका को युद्ध चाहिए, चाहे वो टैरिफ़ युद्ध हो, व्यापार युद्ध हो या किसी और तरह का युद्ध, हम अंत तक लड़ने को तैयार हैं.

  1. ट्रंप ने चीन से आयात किए जाने वाले सामान पर टैरिफ़ 10% से बढ़ाकर 20% कर दिया है. चीन ने इस मामले में अमेरिका के ख़िलाफ़ विश्व व्यापार संगठन - WTO में एक शिकायत दर्ज कराई है. चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि
  2. अमेरिका द्वारा एकतरफ़ा टैक्स कार्रवाई विश्व व्यापार संगठन के नियमों का गंभीर उल्लंघन है और चीन-अमेरिका के आर्थिक और व्यापारिक सहयोग की बुनियाद के ख़िलाफ़ है.


टैरिफ़ बढ़ाते हुए ट्रंप ने चीन पर आरोप लगाया है कि चीन ने फैंटानिल और अन्य गंभीर नशीली दवाओं की अमेरिका में तस्करी को रोकने के लिए कुछ ख़ास नहीं किया. लेकिन चीन के विदेश मंत्रालय ने इसका तुरंत खंडन किया है. चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि फैंटानिल का मुद्दा चीन से आयात पर अमेरिका द्वारा टैरिफ़ बढ़ाने का एक हल्का बहाना है.. कोई और नहीं बल्कि अमेरिका ही अपने अंदर फैंटानिल संकट के बढ़ने के लिए ज़िम्मेदार है. मानवता और अमेरिकी लोगों के प्रति सदाशयता की भावना से हमने इस मुद्दे पर अमेरिका की मदद करने के लिए ठोस कदम उठाए हैं. हमारी कोशिशों को पहचान देने के बजाय अमेरिका ने चीन पर आरोप लगाने और बदनाम करने की कोशिश की है. अमेरिका टैरिफ़ बढ़ाकर दबाव बढ़ाने और चीन को ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहा है.

चीन ने आगे कहा कि वो मदद के लिए हमें दंड दे रहे हैं. ये अमेरका की समस्याएं ख़त्म नहीं करेगा और नशीली दवाओं को लेकर हमारे सहयोग और बातचीत को नुक़सान पहुंचाएगा. धमकियां हमें नहीं डरातीं. दबाव हम पर काम नहीं करता. दबाव, धमकियां चीन के साथ व्यवहार करने का सही तरीका नहीं है. चीन पर अधिकतम दबाव डालने वाला कोई भी ग़लत व्यक्ति को चुन रहा है और ग़लत आकलन कर रहा है. अगर अमेरिका वास्तव में फैंटानिल के मुद्दे को हल करना चाहता है तो सही तरीका ये होगा कि चीन से बातचीत करे और एक दूसरे को बराबर समझे.
 

  1. तो चीन और अमेरिका के बीच ये लड़ाई लंबी चलने वाली है. इसकी वजह ये भी है कि दुनिया में चीन के बढ़ते दबदबे से अमेरिका सबसे ज़्यादा ख़तरा महसूस कर रहा है इसलिए उसके साथ मुक़ाबले का कोई मौका नहीं छोड रहा. लेकिन भारत को इस पूरे द्वंद में अपने हितों को देखना होगा.
  2. अब देखते हैं कि अमेरिका द्वारा चीन पर टैरिफ़ बढ़ाने का भारत को क्या फ़ायदा हो सकता है. कई जानकारों के मुताबिक अमेरिका ने चीन से आयात होने वाली वस्तुओं पर टैरिफ़ बढ़ाने का जो फ़ैसला किया है, वो भारत के लिए एक मौका हो सकता है अगर भारत कुछ अंदरूनी सुधार करे.



2024 में चीन ने अमेरिका को 462 अरब डॉलर का निर्यात किया था. इसके मुक़ाबले में भारत का अमेरिका को निर्यात महज़ 90 अरब डॉलर था. Directorate General of Foreign Trade (DGFT) के पूर्व एडिशनल डीजी अजय श्रीवास्तव का कहना है कि 2017 से 2024 के बीच अमेरिका में भारत का निर्यात 38 अरब डॉलर बढ़ा जिसमें से अधिकतर चीन की क़ीमत पर बढ़ा है. इसलिए इस बार बेहतर मौका है. ख़ासतौर पर ऑटो पार्ट्स के मामले में.

Automotive Component Manufacturers Association of India (ACMA) की अध्यक्ष श्रद्धा सूरी मारवाह का भी कहना है कि इस टैरिफ़ वॉर के दौरान अमेरिकी बाज़ार में चीन के मुक़ाबले भारत को एक competitive advantage रहेगी क्योंकि चीन को ज़्यादा टैरिफ़ का सामना करना पड़ रहा है.

उन्होंने कहा कि ऑटो कंपोनेंट्स में टैरिफ़ के मामले में चीन हमारे मुक़ाबले 20 से 25 प्रतिशत ज़्यादा नुक़सान में है.  इससे हम फ़ायदे में रहेंगे. अमेरिका को हमारा निर्यात 20 से 30% की दर से बढ़ता रह सकता है.फासनर्स, व्हील्स, रिम्स और गियर्स के अमेरिका को निर्यात में हमारी लागत चीन के मुक़ाबले 25 से 30 फीसदी कम होती है.
 

  • अगर मैक्सिको से मुक़ाबला करें तो मुक़ाबला ज़्यादा कड़ा है. वो कहती हैं कि अमेरिका में मैक्सिको को हमसे 2 से 5% का फ़ायदा है.  इसकी बड़ी वजह ये है कि मैक्सिको और अमेरिका की सीमाएं आपस में जुड़ी हुई हैं.. और ये अंतर मालभाड़े के कारण आता है, किसी और वजह से नहीं..
  • ऑटो कम्पोनेंट सेक्टर देश के उन कुछ सेक्टर्स में से एक है जिनमें भारत को अब ट्रेड सरप्लस है. 2018-19 में जहां भारतीय ऑटो कम्पोनेंट इंडस्ट्री 2.5 अरब डॉलर का घाटा था  वहीं 2023-24 में ये 30 करोड़ डॉलर के सरप्लस में बदल गया. 
  • ACMA और बोस्टन कन्सल्टिंग ग्रुप (BCG) की एक साझा रिपोर्ट के मुताबिक भारत का ऑटो कम्पोनेंट एक्सपोर्ट 21.2 अरब डॉलर से बढ़कर 100 अरब डॉलर होने की संभावना है. इसके लिए भारत को अमेरिका और यूरोप के बाज़ारों पर ख़ास ध्यान देना होगा. .
  • रिपोर्ट में इस लक्ष्य के लिए कोई समय नहीं दिया गया है लेकिन BCG के मैनेजिंग डायरेक्टर और पार्टनर सौरभ छजर के मुताबिक अगले पांच से छह साल में भारत ये लक्ष्य हासिल कर सकता है.

    दुनिया में ऑटो कम्पोनेंट का सालाना बाज़ार 1.2 ट्रिलियन डॉलर का है. /// इसमें 149 बिलियन डॉलर के निर्यात के साथ चीन सबसे आगे है जबकि भारत का हिस्सा महज़ 21 अरब डॉलर है. इसलिए भारत के सामने इस क्षेत्र में आगे बढ़ने का बड़ा मौका है.

    तो अब ये देखना दिलचस्प रहेगा कि टैरिफ़ वॉर का असर किस पर कितना होता है. और क्या भारत इसे अंतरराष्ट्रीय कारोबार में अपनी पैठ बढ़ाने का एक मौका बना सकता है.


from NDTV India - Pramukh khabrein https://ift.tt/X98RjIH

No comments:

Post a Comment

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here

Pages